तेनाली रामा की 10 चतुर कहानिया | Tenali Raman Short Stories in Hindi

तेनाली रामा की 10 चतुर कहानिया | Tenali Raman Short Stories in Hindi: इस पाठ में हम तेनाली रामा के tenali raman ki chaturai ke kisse in hindi in short के बारे में जानेगे जहा पर हम आपके साथ tenali raman short stories in hindi बतायेगे.

तो चलिए शुरू करते है .. Tenali Raman Short Stories in Hindi

तेनाली रामा की 10 चतुर कहानिया – Tenali Raman Short Stories in Hindi

1.तेनाली की कला – Tenali Rama in Hindi

विजयनगर के राजा अपने महल में चित्रकारी करवाना चाहते थे। इस काम के लिए उन्होंने एक चित्रकार को नियुक्त किया। चित्रों को जिसने देखा सबने बहुत सराहा पर तेनालीराम को कुछ शंका थी। एक चित्र की पॄष्ठभूमि में प्राकॄतिक दॄश्य था। उसके सामने खडे होकर उसने भोलेपन से पूछा, “इसका दूसरा पक्ष कहां हैं? इसके दूसरे अंग कहां हैं?” राजा ने हंसकर जवाब दिया, “तुम इतना भी नहीं जानते कि उनकी कल्पना करनी होती हैं।” तेनालीराम ने मुंह बिदकाते हुए कहा, “तो चित्र ऐसे बनते हैं! ठीक हैं, मैं समझ गया।”
कुछ महीने बाद तेनालीराम ने राजा से कहा, “कई महीनों से मैं दिन-रात चित्रकला सीख रहा हूं। आपकी आज्ञा हो तो मैं राज महल की दीवारों पर कुछ चित्र बनाना चाहता हूं।”

राजा ने कहा, “वाह! यह तो बहुत अच्छी बात हैं। ऐसा करो, जिन भित्तिचित्रों के रंग उड गए हैं उनको मिटाकर नए चित्र बना दो।”

तेनालीराम ने पुराने चित्रों पर सफेदी पोती और उनकी जगह अपने अए चित्र बना दिए। उसने एक पांव यहां बनाया, एक आंख वहां बनाई और एक अंगुली कहीं और। शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के चित्रों से उसने दीवारों को भर दिया। चित्रकारी के बाद राजा को उसकी कला देखने के लिए निमंत्रित किया। महल की दीवारों पर असंबद्ध अंगो के चित्र देख राजा को बहुत निराशा हुई। राजा ने पूछा, “यह तुमने क्या किया? तस्वीरें कहां हैं?”

तेनालीराम ने कहा, “चित्रों में बाकी चीजों की कल्पना करनी पडती हैं। आपने मेरा सबसे अच्छा चित्र तो अभी देखा ही नहीं।” यह कहकर वह राजा को एक खाली दीवार के पास ले गया जिस पर कुछेक हरी-पीली लकीरें बनी थी।

“यह क्या हैं?” राजा ने चिढकर पूछा।

“यह घास खाती गाय का चित्र हैं।” “लेकिन गाय कहां हैं?” राजा ने पूछा। “गाय घास खाकर अपने बाडे में चली गई।” ये कल्पना कर लीजिए हो गया न चित्र पूरा। राजा उसकी बात सुनकर समझ गया कि आज तेनालीराम ने उस दिन की बात का जवाब दिया हैं।.

2.तेनाली एक योद्धा – tenali raman ki chaturai ke kisse in

एक बार एक प्रसिध्द योद्धा उत्तर भारत से विजयनगर आया। उसने कई युद्ध तथा पुरस्कार जीत रखे थे। इसके अतिरिक्त वह आज तक अपनी पूरी जिन्दगी में मल्ल युध्द में पराजित नहीं हुआ था। उसने युद्ध के लिए विजयनगर के योध्दाओं को ललकारा। उसके लम्बे, गठीले व शक्तिशाली शरीर के सामने विजयनगर का कोई भी योद्धा टिक न सका। अब विजयनगर की प्रतिष्ठा दॉव पर लग चुकी थी । इस बात से नगर के सभी योद्धा चिन्तित थे। बाहर से आया हुआ एक व्यक्ति पूरे विजयनगर को ललकार रहा था और वे सब कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। अतः सभी योद्धाइस समस्या के हल के लिए तेनाली राम के पास गए।
उनकी बात बडे ध्यान से सुनने के बाद तेनाली राम बोला, ” सचमुच, यह एक बडी समस्या है। परन्तु उस योद्धा को तो कोई योद्धा ही हरा सकता है। मैं कोई योद्धा तो हूँ नहीं, बस एक विदुषक हूँ। इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ?

तेनाली राम की यह बात सुन सभी योद्धा निराश हो गए, क्योंकि उनकी एकमात्र आशा तेनाली राम ही था । जब वे निराश मन से जाने लगे तो तेनाली राम ने उन्हें रोक कर कहा, ” मैं उत्तर भारत के उस वीर योद्धा से युद्ध करुँगा और उसे हराऊँगा, परन्तु तुम्हें वचन देना कि जैसा मैं कहुँगा, तुम सब वैसा ही करोगे।” उन लोगों ने तुरन्त वचन दे दिया। वचन लेने के बाद तेनाली राम बोला, “शक्ति परीक्षण के दिन तुम सभी पदक पहना देना और उस योद्धा से मेरा परिचय अपने गुरु के रूप में कराना, और मुझे अपने कंधे पर बैठा कर ले जाना ।”

विजयनगर के योद्धाओं ने तेनाली राम को ऐसा ही करने आ आश्वासन दिया। निश्चित दिन के लिए तेनाली राम ने योद्धाओं को एक नारा भी याद करने को कहा जो कि इस प्रकार था, ‘ममूक महाराज की जय, मीस ममूक महाराज की जय। ‘ तेनाली राम ने कहा, “जब तुम मुझे कंधों पर बैठा कर युद्धभूमि में जाओगे, तब सभी इस नारे को जोर-जोर से बोलना।”

अगले दिन युद्धभूमि में जोर-जोर से नारा लगाते हुए योद्धाओं की ऊँची आवाज सुनकर उत्तर भारत के योध्दा ने सोचा कि अवश्य ही कोई महान योद्धा आ रहा है। नारा कन्नड भाषा का साधारण श्लोक था, जिसमें ‘ममूक’ का अर्थ था- ‘धूल चटाना” जब कि ‘मीस’ क अर्थ भी लगभग यही था। उत्तर भारत के योद्धा को कन्नड भाषा समझ में नहीं आ रही थी। अतः उसने सोचा कि कोई महान योद्धा आ रहा है।

तेनाली राम उत्तर भारत के योद्धा के पास आया और बोला, “इससे पहले कि मैं तुम्हारे साथ युध्द करुँ, तुम्हें मेरे हाव-भावों का अर्थ बताना होगा। दर असल प्रत्येक महान योध्दा को इन हाव-भावों का अर्थ ज्ञात होना चाहिए। अगर तुम मेरे हाव-भावों का अर्थ बता दोगे, तभी मैं तुम्हारे साथ युद्ध करुँगा। यदि तुम अर्थ नहीं बता सके तो तुम्हें अपनी पराजय स्वीकार करनी पडेगी।”

इतने बडे-बडे योद्धाओं को देख, जो कि तेनाली राम को कन्धों पर उठाकर लाए थे और उसे अपना गुरु बता रहे थे व जोर-जोर से नारा भी लगा रहे थे, वह योद्धा सोचने लगा कि अवश्य ही तेनाली राम कोई बहुत ही महान योद्धा है। अतः उसने तेनाली की बात स्वीकार कर ली।

इसके बाद तेनाली राम ने संकेत देने आरम्भ किए। तेनाली राम ने सर्वप्रथम अपना दायॉ पैर आगे करके योद्धा की छाती को अपने दाएँ हाथ से छुआ। फिर अपने बाएँ हाथ से उसने स्वयं को छुआ। तत्पश्चात उसने अपने दाएँ हाथ को बाएँ हाथ पर रखकर जोर से उसने दबा दिया । इसके बाद उसने अपनी तर्जनी से दक्षिण दिशा की ओर संकेत किया।

फिर उसने अपने दोनों हाथों की तर्जनी उँगलियों से एक गॉठ बनाई। तत्पश्चात एक मुट्ठी मिट्टी उठाकर अपने मुँह में डालने का अभिनय किया।

इसके पश्चात उसने उत्तर भारत के योद्धा से इन हाव-भावों को पहचानने के लिए कहा। परन्तु वह योद्धा कुछ समझ नहीं पाया, इसलिए उसने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। वह विजयनगर से चला गया और जाते-जाते अपने सभी पदक व पुरस्कार तेनाली राम को दे गया।

विजयनगर के राजा व प्रजा परिस्थिति के बदलते ही अचम्भित से हो गए। सभी योद्धा बिना युध्द किए ही जीतने से प्रसन्न थे। राजा ने तेनाली राम को बुलाकर पूछा, “तेनाली, उन हाव-भावों से तुमने क्या चमत्कार किया?”

तेनाली राम बोला, “महाराज, इसमें कोई चमत्कार नहीं था। यह मेरी योद्धा को मूर्ख बनाने की योजना थी। मेरे हाव-भावों के अनुसार वह योद्धा उसी प्रकार शक्तिशाली था, जिस प्रकार किसी का दायॉ हाथ शक्तिशाली होता है और मैं उसके सामने बाएँ हाथ की तरह निर्बल था। यदि दाएँ हाथ के समान शक्तिशाली योद्धा बाएँ हाथ के समान निर्बल योद्धा को युद्ध के लिए ललकारेगा, तो निर्बल योद्धा तो बादाम की तरह कुचल दिया जाएगा। सो यदि मैं युद्ध हारता, तो दक्षिण दिशा में बैठी मेरी पत्नी को अपमान रुपी धूल खानी पडती। मेरे हाव-भावों का केवल यही अर्थ था, जिसे वह समझ नहीं पाया।”

तेनाली का यह जवाब सुनकर राजा व सभी एकत्रित लोग ठहाका लगाकर हँस पडे।.

3. जादुई कुएँ


एक बार राजा कॄष्णदेव राय ने अपने गॄहमंत्री को राज्य में अनेक कुएँ बनाने क आदेश दिया। गर्मियॉ पास आ रही थीं, इसलिए राजा चाहते थे कि कुएँ शीघ्र तैयार हो जाएँ, ताकि लोगो को गर्मियों में थोडी राहत मिल सके। गॄहमंत्री ने इस कार्य के लिए शाही कोष से बहुत-सा धन लिया। शीघ्र ही राजा के आदेशानुसार नगर में अनेक कुएँ तैयार हो गए। इसके बाद एक दिन राजा ने नगर भ्रमण किया और कुछ कुँओं का स्वयं निरीक्षण किया। अपने आदेश को पूरा होते देख वह संतुष्ट हो गए।
गर्मियों में एक दिन नगर के बाहर से कुछ गॉव वाले तेनाली राम के पास् पहुँचे, वे सभी गॄहमंत्री के विरुध्द शिकायत लेकर आए थे। तेनाली राम ने उनकी शिकायत सुनी और् उन्हें न्याय प्राप्त करने का रास्ता बताया। तेनाली राम अगले दिन राजा से मिले और बोले, “महाराज! मुझे विजय नगर में कुछ चोरों के होने की सूचना मिली है। वे हमारे कुएँ चुरा रहे हैं।”

इस पर राजा बोले, “क्या बात करते हो, तेनाली! कोई चोर कुएँ को कैसे चुरा सकता है?” “महाराज! यह बात आश्चर्यजनक जरुर है, परन्तु सच है, वे चोर अब तक कई कुएँ चुरा चुके हैं।” तैनाली राम ने बहुत ही भोलेपन से कहा।

उसकी बात को सुनकर दरबार में उपस्थित सभी दरबारी हँसने लगे।

महाराज ने कहा’ “तेनाली राम, तुम्हारी तबियत तो ठीक है। आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो? तुम्हारी बातों पर कोई भी व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता।”

“महाराज! मैं जानता था कि आप मेरी बात पर विश्वास नही करंगे, इसलिए मैं कुछ गॉव वालों को साथ साथ लाया हूँ।वे सभी बाहर खडे हैं। यदि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है, तो आप उन्हें दरबार में बुलाकर पूछ लीजिए। वह आपको सारी बात विस्तारपूर्वक बता दंगे।”

राजा ने बाहर खडे गॉव वालों को दरबार में बुलवाया। एक गॉव वाला बोला, “महाराज! गॄहमंत्री द्वारा बनाए गए सभी कुएँ समाप्त हो गए हैं। आप स्वयं देख सकते हैं।”

राजा ने उनकी बात मान ली और गॄहमंत्री, तेनाली राम, कुछ दरबारियों तथा गॉव वालो के साथ कुओं का निरीक्षण करने के लिए चल दिए। पूरे नगर का निरीक्षण करने के पश्चात उन्होंने पाया कि राजधानी के आस-पास के अन्य स्थानो तथा गॉवों में कोई कुऑ नहीं है। राजा को यह पता लगते देख गॄहमंत्री घबरा गया। वास्तव में उसने कुछ कुओ को ही बनाने का आदेश दिया था। बचा हुआ धन उसने अपनी सुख-सुविधओं पर व्यय कर दिया।

अब तक राजा भी तेनाली राम की बात का अर्थ समझ चुके थे। वे गॄहमंत्री पर क्रोधित होने लगे, तभी तेनाली राम बीच में बोल पडा “महाराज! इसमें इनका कोई दोष नहीं है। वास्तव में वे जादुई कुएँ थे, जो बनने के कुछ दिन बाद ही हवा में समाप्त हो गए।”

अपनी बात स्माप्त कर तेनाली राम गॄहमंत्री की ओर देखने लगा। गॄहमंत्री ने अपना सिर शर्म से झुका लिया। राजा ने गॄहमंत्री को बहुत डॉटा तथा उसे सौ और कुएँ बनवाने का आदेश दिया। इस कार्य की सारी जिम्मेदारी तेनाली राम को सौंपी गई।.

4. कौन बडा

एक बार राजा कॄष्णदेव राय महल में अपनी रानी के पास विराजमान थे। तेनालीराम की बात चली, तो बोले सचमुच हमारे दरबार में उस जैसा चतुर कोई और नहीं हैं इसलिए अभी तक तो कोई उसे हरा नहीं पाया हैं।
सुनकर रानी बोली आप कल तेनालीराम को भोजन के लिए महल में आमंत्रित करें। मैं उसे जरुर हरा दूंगी। राजा ने मुस्कुराकर हामी भर ली । अगले दिन रानी ने अपने अपने हाथों से स्वादिष्ट पकवान बनाए। राजा के साथ बैठा तेनालीराम उन पकवानों की जी भर के प्रशंसा करता हुआ, खाता जा रहा था। खाने के बाद रानी ने उसे बढिया पान का बीडा भी खाने को दिया।

तेनालीराम मुस्कराकर बोला “सचमुच, आज जैसा खाने का आनंद तो मुझे कभी नहीं आया!” तभी रानी ने अचानक पूछ लिया, “अच्छा तेनालीराम एक बात बताओ। राजा बडे हैं या मैं? अब तो तेनालीराम चकराया। राजा-रानी दोनों ही उत्सुकता से देख रहे थे कि भला तेनालीराम क्या जवाब देता हैं। अचानक तेनालीराम को जाने क्या सूझा, उसने दोनों हाथ जोडकर पहले धरती को प्रणाम किया, फिर एकाएक जमीन पर गिर पडा। रानी घबराकर बोली “अरे-अरे, यह क्या तेनालीराम?”

तेनालीराम उठकर खडा हुआ, और बोला “महारानी जी, मेरे लिए तो आप धरती हैं और राजा आसमान! दोनों में से किसे छोटा, किसे बडा कहूं कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं! वैसे आज महारानी के हाथों का बना भोजन इतना स्वादिष्ट था कि उहीं को बडा कहना होगा इसलिए मैं धरती को ही दंडवत प्रणाम कर रहा था।”

सुनकर राजा और रानी दोनों की हंसी छूट गई। रानी बोली “सचमुच तुम चतुर हो तेनालीराम। मुझे जिता दिया, पर हारकर भी खुद जीत गए।” इस पर महारानी और राजा कॄष्णदेव राय के साथ तेनालीराम भी खिल-खिलाकर हंस दिए।.

5.कुत्ते की दुम सीधी

एक दिन राजा कृष्णदेव राय के दरबार में इस बात पर गरमागरम बहस हो रही थी कि मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है या नहीं। कुछ का कहना था कि मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है। कुछ का विचार था कि ऐसा नहीं हो सकता, जैसे कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं हो सकती।
राजा को एक विनोद सूझा। उन्होंने कहा, ‘बात यहाँ पहुँची कि अगर कुत्ते की दुम सीधी की जा सकती है, तो मनुष्य का स्वभाव भी बदला जा सकता है, नहीं तो नहीं बदला जा सकता।’ राजा ने फिर विनोद को आगे बढ़ाने की सोची, बोले, ‘ठीक है, आप लोग यह प्रयत्न करके देखिए।

राजा ने दस चुने हुए व्यक्तियों को कुत्ते का एक-एक पिल्ला दिलवाया और छह मास के लिए हर मास दस स्वर्णमुद्राएँ देना निश्चित किया। इन सभी लोगों को कुत्तों की दुम सीधी करने का प्रयत्न करना था। इन व्यक्तियों में एक तेनालीराम भी था। शेष नौ लोगों ने इन छह महीनों में पिल्लों की दुम सीधी करने की बड़ी कोशिश कीं।

एक ने पिल्ले की पूँछ के छोर को भारी वजन से दबा दिया ताकि इससे दुम सीधी हो जाए। दूसरे ने पिल्ले की दुम को पीतल की एक सीधी नली में डाले रखा। तीसरे ने अपने पिल्ले की पूँछ सीधी करने के लिए हर रोज पूँछ की मालिश करवाई। छठे सज्जन कहीं से किसी तांत्रिक को पकड़ लाए, जो कई तरह से उटपटाँग वाक्य बोलकर और मंत्र पढ़कर इस काम को करने के प्रयत्न में जुटा रहा। सातवें सज्जन ने अपने पिल्ले की शल्य चिकित्सा यानी ऑपरेशन करवाया। आठवाँ व्यक्ति पिल्ले को सामने बिठाकर छह मास तक प्रतिदिन उसे भाषण देता रहा कि पूँछ सीधी रखो भाई, सीधी रखो।

नवाँ व्यक्ति पिल्ले को मिठाइयाँ खिलाता रहा कि शायद इससे यह मान जाए और अपनी पूँछ सीधी कर ले। पर तेनालीराम पिल्ले को इतना ही खिलाता, जितने से वह जीवित रहे। उसकी पूँछ भी बेजान सी लटक गई, जो देखने में सीधी ही जान पड़ती थी।

छह मास बीत जाने पर राजा ने दसों पिल्लों को दरबार में उपस्थित करने का आदेश दिया। नौ व्यक्तियों ने हट्टे-कट्टे और स्वस्थ पिल्ले पेश किए। जब पहले पिल्ले की पूँछ से वजन हटाया गया तो वह एकदम टेढ़ी होकर ऊपर उठ गई। दूसरी की दुम जब नली में से निकाली गई वह भी उसी समय टेढ़ी हो गई। शेष सातों पिल्लों की पूँछे भी टेढ़ी ही थीं।

तेनालीराम ने अपने अधमरा-सा पिल्ला राजा के सामने कर दिया। उसके सारे अंग ढलक रहे थे। तेनालीराम बोला, ‘महाराज, मैंने कुत्ते की दुम सीधी कर दी है।’ ‘दुष्ट कहीं के!’ राजा ने कहा, ‘बेचारे निरीह पशु पर तुम्हें दया भी नहीं आई? तुमने तो इसे भूखा ही मार डाला। इसमें तो पूँछ हिलाने जितनी शक्ति भी नहीं है।’

‘महाराज, अगर आपने कहा होता कि इसे अच्छी तरह खिलाया-पिलाया जाए तो मैं कोई कसर नहीं छोड़ता। पर आपका आदेश तो इसकी पूँछ को स्वभाव के विरुद्ध सीधा करने का था, जो इसे भूखा रखने से ही पूरा हो सकता था। बिल्कुल ऐसे ही मनुष्य का स्वभाव भी असल में बदलता नहीं है। हाँ, आप उसे काल कोठरी में बंद करके, उसे भूखा रखकर उसका स्वभाव मुर्दा बना सकते हैं।’.

6.कीमती उपहार


लड़ाई जीतकर राजा कृष्णदेव राय ने विजय उत्सव मनाया। उत्सव की समाप्ति पर राजा ने कहा- ‘लड़ाई की जीत अकेले मेरी जीत नहीं है-मेरे सभी साथियों और सहयोगियों की जीत है। मैं चाहता हूँ कि मेरे मंत्रिमंडल के सभी सदस्य इस अवसर पर पुरस्कार प्राप्त करें। आप सभी लोग अपनी-अपनी पसंद का पुरस्कार लें। परंतु एक शर्त है कि सभी को अलग-अलग पुरस्कार लेने होंगे। एक ही चीज दो आदमी नहीं ले सकेंगे।’ यह घोषणा करने के बाद राजा ने उस मंडप का पर्दा खिंचवा दिया, जिस मंडप में सारे पुरस्कार सजाकर रखे गए थे। फिर क्या था! सभी लोग अच्छे-से-अच्छा पुरस्कार पाने के लिए पहल करने लगे। पुरस्कार सभी लोगों की गिनती के हिसाब से रखे गए थे।
अतः थोड़ी देर की धक्का-मुक्की और छीना-झपटी के बाद सबको एक-एक पुरस्कार मिल गया। सभी पुरस्कार कीमती थे। अपना-अपना पुरस्कार पाकर सभी संतुष्ट हो गए।अंत में बचा सबसे कम मूल्य का पुरस्कार-एक चाँदी की थाली थी

यह पुरस्कार उस आदमी को मिलना था, जो दरबार में सबके बाद पहुँचे यानी देर से पहुँचने का दंड। सब लोगों ने जब हिसाब लगाया तो पता चला कि श्रीमान तेनालीराम अभी तक नहीं पहुँचे हैं। यह जानकर सभी खुश थे।

सभी ने सोचा कि इस बेतुके, बेढंगे व सस्ते पुरस्कार को पाते हुए हम सब तेनालीराम को खूब चिढ़ाएँगे। बड़ा मजा आएगा। तभी श्रीमान तेनालीराम आ गए। सारे लोग एक स्वर में चिल्ला पड़े, ‘आइए, तेनालीराम जी! एक अनोखा पुरस्कार आपका इंतजार कर रहा है।’ तेनालीराम ने सभी दरबारियों पर दृष्टि डाली।

सभी के हाथों में अपने-अपने पुरस्कार थे। किसी के गले में सोने की माला थी, तो किसी के हाथ में सोने का भाला। किसी के सिर पर सुनहरे काम की रेशम की पगड़ी थी, तो किसी के हाथ में हीरे की अँगूठी। तेनालीराम उन सब चीजों को देखकर सारी बात समझ गया। उसने चुपचाप चाँदी की थाली उठा ली। उसने चाँदी की उस थाली को मस्तक से लगाया और उस पर दुपट्टा ढंक दिया, ऐसे कि जैसे थाली में कुछ रखा हुआ हो।

राजा कृष्णदेव राय ने थाली को दुपट्टे से ढंकते हुए तेनालीराम को देख लिया। वे बोले, ‘तेनालीराम, थाली को दुपट्टे से इस तरह क्यों ढंक रहे हो?’

‘क्या करुँ महाराज, अब तक तो मुझे आपके दरबार से हमेशा अशर्फियों से भरे थाल मिलते रहे हैं। यह पहला मौका है कि मुझे चाँदी की थाली मिली है। मैं इस थाल को इसलिए दुपट्टे से ढंक रहा हूँ ताकि आपकी बात कायम रहे। सब यही समझे कि तेनालीराम को इस बार भी महाराज ने थाली भरकर अशर्फियाँ पुरस्कार में दी हैं।’

महाराज तेनालीराम की चतुराई-भरी बातों से प्रसन्न हो गए। उन्होंने गले से अपना बहुमूल्य हार उतारा और कहा, ‘तेनालीराम, तुम्हारी आज भी खाली नहीं रहेगी। आज उसमें सबसे बहुमूल्य पुरस्कार होगा। थाली आगे बढ़ाओ तेनालीराम!’

तेनालीराम ने थाली राजा कृष्णदेव राय के आगे कर दी। राजा ने उसमें अपना बहुमूल्य हार डाल दिया। सभी लोग तेनालीराम की बुद्धि का लोहा मान गए। थोड़ी देर पहले जो दरबारी उसका मजाक उड़ा रहे थे, वे सब भीगी बिल्ली बने एक-दूसरे का मुँह देख रहे थे, क्योंकि सबसे कीमती पुरस्कार इस बार भी तेनालीराम को ही मिला था।.

7. अपराधी


एक दिन राजा कॄष्णदेव राय व उनके दरबारी, दरबार में बैठे थे। तेनाली राम भी वहीं थे । अचानक एक चरवाहा वहॉ आया और बोला, ” महाराज, मेरी सहायता कीजिए। मेरे साथ न्याय कीजिए।”
“बताओ, तुम्हारे साथ क्या हुआ है?” राजा ने पूछा।

“महाराज, मेरे पडोस मे एक कंजूस आदमी रहता है। उसका घर बहुत पुराना हो गया है, परन्तु वह उसकी मरम्मत नहीं करवाता। कल उसके घर की एक दीवार गिर गई और मेरी बकरी उसके नीचे दबकर मर गई। कॄपया मेरे पडोसी से मेरी बकरी का हर्जाना दिलवाने में मेरी सहायता कीजिए।”

महाराज के कुछ कहने के पहले ही तेनाली राम अपने स्थान से उठा और बोला, “महाराज, मेरे विचार से दीवार टूटने के लिए केवल इसके पडोसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”

“तो फिर तुम्हारे विचार में दोषी कौन है?” राजा ने पूछा।

“महाराज, यदि आप मुझे अभी थोडा समय दें, तो मैं इस बात की गहराई तक जाकर असली अपराधी को आपके सामने प्रस्तुत कर दूंगा।” तेनाली राम ने कहा।

राजा ने तेनाली राम के अनुरोध को मान कर उसे समय प्रदान कर दिया। तेनाली राम ने चरवाहे के पडोसी को बुलाया और उसे मरी बकरी का हर्जाना देने के लिए कहा। पडोसी बोला, “महोदय, इसके लिए मैं दोषी नहीं हूँ। यह दीवार तो मैंने मिस्त्री से बनवाई थी, अतः असली अपराधी तो वह मिस्त्री है, जिसने वह दीवार बनाई। उसने इसे मजबूती से नहीं बनाया। अतः वह गिर गई।”

तेनाली राम ने मिस्त्री को बुलवाया। मिस्त्री ने भी अपने को दोषी मानने से इनकार कर दिया और बोला, “अन्नदाता, मुझे व्यर्थ ही दोषी करार दिया जा रहा है जबकि मेरा इसमें कोई दोष नहीं है। असली दोष तो उन मजदूरों का है, जिन्होंने गारे में अधिक पानी मिलाकर मिश्रण को खराब बनाया, जिससे ईंटें अच्छी तरह से चिपक नहीं सकीं और दीवार गिर गई। आपको हर्जाने के लिए उन्हें बुलाना चाहिए।”

राजा ने मजदूरों को बुलाने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। राजा के सामने आते ही मजदूर बोले, “महाराज, इसके लिए हमें दोषी तो वह पानी वाला व्यक्ति है, जिसने गारे चूने में अधिक पानी मिलाया।”

अब की बार गारे में पानी मिलाने वाले व्यक्ति को बुलाया गया। अपराध सुनते ही वह बोला, “इसमें मेरा कोई दोष नहीं है महाराज, वह बर्तन जिसमें पानी हुआ था, वह बहुत बडा था। जिस कारण उसमें आवश्यकता से अधिक पानी भर गया। अतः पानी मिलाते वक्त मिश्रण में पानी की मात्रा अधिक हो गई। मेरे विचार से आपको उस व्यक्ति को पकडना चाहिए, जिसने पानी भरने के लिए मुझे इतना बडा बर्तन दिया।

तेनाली राम के पूछने पर कि वह बडा बर्तन उसे कहॉ से मिला, उसने बताया कि पानी वाला बडा बर्तन उसे चरवाहे ने दिया था, जिसमें आवश्यकता से अधिक पानी भर गया था|

तब तेनाली राम ने चरवाहे से कहा, “देखो, यह सब तुम्हारा ही दोष है। तुम्हारी एक गलती ने तुम्हारी ही बकरी की जान ले ली।”

चरवाहा लज्जित होकर दरबार से चला गया। परन्तु सभी तेनाली राम के बुद्धिमतापूर्ण न्याय की भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहे थे।.

8.अपमान का बदला


तेनालीराम ने सुना था कि राजा कृष्णदेव राय बुद्धिमानों व गुणवानों का बड़ा आदर करते हैं। उसने सोचा, क्यों न उनके यहाँ जाकर भाग्य आजमाया जाए। लेकिन बिना किसी सिफारिश के राजा के पास जाना टेढ़ी खीर थी। वह किसी ऐसे अवसर की ताक में रहने लगा। जब उसकी भेंट किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से हो सके।
इसी बीच तेनालीराम का विवाह दूर के नाते की एक लड़की मगम्मा से हो गया। एक वर्ष बाद उसके घर बेटा हुआ। इन्हीं दिनों राजा कृष्णदेव राय का राजगुरु मंगलगिरि नामक स्थान गया। वहाँ जाकर रामलिंग ने उसकी बड़ी सेवा की और अपनी समस्या कह सुनाई।

राजगुरु बहुत चालाक था। उसने रामलिंग से खूब सेवा करवाई और लंबे-चौड़े वायदे करता रहा। रामलिंग अर्थात तेनालीराम ने उसकी बातों पर विश्वास कर लिया और राजगुरु को प्रसन्न रखने के लिए दिन-रात एक कर दिया। राजगुरु ऊपर से तो चिकनी-चुपड़ी बातें करता रहा, लेकिन मन-ही-मन तेनालीराम से जलने लगा।

उसने सोचा कि इतना बुद्धिमान और विद्वान व्यक्ति राजा के दरबार में आ गया तो उसकी अपनी कीमत गिर जाएगी। पर जाते समय उसने वायदा किया-‘जब भी मुझे लगा कि अवसर उचित है, मैं राजा से तुम्हारा परिचय करवाने के लिए बुलवा लूँगा।’ तेनालीराम राजगुरु के बुलावे की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगा, लेकिन बुलावा न आना था और न ही आया।

लोग उससे हँसकर पूछते, ‘क्यों भाई रामलिंग, जाने के लिए सामान बाँध लिया ना?’ कोई कहता, ‘मैंने सुना है कि तुम्हें विजयनगर जाने के लिए राजा ने विशेष दूत भेजा है।’ तेनालीराम उत्तर देता-‘समय आने पर सब कुछ होगा।’ लेकिन मन-ही-मन उसका विश्वास राजगुरु से उठ गया।

तेनालीराम ने बहुत दिन तक इस आशा में प्रतीक्षा की कि राजगुरु उसे विजयनगर बुलवा लेगा। अंत में निराश होकर उसने फैसला किया कि वह स्वयं ही विजयनगर जाएगा। उसने अपना घर और घर का सारा सामान बेचकर यात्रा का खर्च जुटाया और माँ, पत्नी तथा बच्चे को लेकर विजयनगर के लिए रवाना हो गया।

यात्रा में जहाँ कोई रुकावट आती, तेनालीराम राजगुरु का नाम ले देता, कहा, ‘मैं उनका शिष्य हूँ।’ उसने माँ से कहा, ‘देखा? जहाँ राजगुरु का नाम लिया, मुश्किल हल हो गई। व्यक्ति स्वयं चाहे जैसा भी हो, उसका नाम ऊँचा हो तो सारी बाधाएँ अपने आप दूर होने लगती हैं। मुझे भी अपना नाम बदलना ही पड़ेगा।

राजा कृष्णदेव राय के प्रति सम्मान जताने के लिए मुझे भी अपने नाम में उनके नाम का कृष्ण शब्द जोड़ लेना चाहिए। आज से मेरा नाम रामलिंग की जगह रामकृष्ण हुआ।’

‘बेटा, मेरे लिए तो दोनों नाम बराबर हैं। मैं तो अब भी तुझे राम पुकारती हूँ, आगे भी यही पुकारूँगी।’ माँ बोली।

कोडवीड़ नामक स्थान पर तेनालीराम की भेंट वहाँ के राज्य प्रमुख से हुई, जो विजयनगर के प्रधानमंत्री का संबंधी था। उसने बताया कि महाराज बहुत गुणवान, विद्वान और उदार हैं, लेकिन उन्हें कभी-कभी जब क्रोध आता है तो देखते ही देखते सिर धड़ से अलग कर दिए जाते हैं। ‘जब तक मनुष्य खतरा मोल न ले, वह सफल नहीं हो सकता। मैं अपना सिर बचा सकता हूँ।

तेनालीराम के स्वर में आत्मविश्वास था। राज्य प्रमुख ने उसे यह भी बताया कि प्रधानमंत्री भी गुणी व्यक्ति का आदर करते हैं, पर ऐसे लोगों के लिए उनके यहाँ स्थान नहीं है, जो अपनी सहायता आप नहीं कर सकते। चार महीने की लंबी यात्रा के बाद तेनालीराम अपने परिवार के साथ विजयनगर पहुँचा। वहाँ की चमक-दमक देखकर तो वह दंग ही रह गया।

चौड़ी-चौड़ी सड़कें, भीड़भीड़, हाथी-घोड़े, सजी हुई दुकानें और शानदार इमारतें- यह सब उसके लिए नई चीजें थी।’ उसने कुछ दिन ठहरने के लिए वहाँ एक परिवार से प्रार्थना की। वहाँ अपनी माँ, पत्नी और बच्चे को छोड़कर वह राजगुरु के यहाँ पहुँचा। वहाँ तो भीड़ का ठिकाना ही नहीं था।

राजमहल के बड़े-से-बड़े कर्मचारी से लेकर रसोइया तक वहाँ जमा थे। नौकर-चाकर भी कुछ कम न थे। तेनालीराम ने एक नौकर को संदेश देकर भेजा कि उनसे कहो तेनाली गाँव से राम आया है। नौकर ने वापस आकर कहा, ‘राजगुरु ने कहा है कि वह इस नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानते।’

तेनालीराम बहुत हैरान हुआ। वह नौकरों को पीछे हटाता हुआ सीधे राजगुरु के पास पहुँचा, ‘राजगुरु आपने मुझे पहचाना नहीं? मैं रामलिंग हूँ, जिसने मंगलगिरि में आपकी सेवा की थी।’ राजगुरु भला उसे कब पहचानना चाहता था। उसने नौकरों से चिल्लाकर कहा, ‘मैं नहीं जानता, यह कौन आदमी है, इसे धक्के देकर बाहर निकाल दो।’

नौकरों ने तेनालीराम को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। चारों ओर खड़े लोग यह दृश्य देखकर ठहाके लगा रहे थे। उसका कभी ऐसा अपमान नहीं हुआ था। उसने मन-ही-मन फैसला किया कि राजगुरु से वह अपने अपमान का बदला अवश्य लेगा। लेकिन इससे पहले राजा का दिल जीतना जरूरी था।

दूसरे दिन वह राजदरबार में जा पहुँचा। उसने देखा कि वहाँ जोरों का वाद-विवाद हो रहा है। संसार क्या है? जीवन क्या है? ऐसी बड़ी-बड़ी बातों पर बहस हो रही थी। एक पंडित ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, ‘यह संसार एक धोखा है। हम जो देखते-सुनते हैं, महसूस करते हैं, चखते या सूँघते हैं, केवल हमारे विचार में है। असल में यह सब कुछ नहीं होता, लेकिन हम सोचते हैं कि होता है।’

‘क्या सचमुच ऐसा है?’तेनालीराम ने कहा। ‘यही बात हमारे शास्त्रों में भी कही गई है।’ पंडितजी ने थोड़ी ऐंठ दिखाते हुए हैरान होकर पूछा। और सब लोग चुप बैठे। शास्त्रों ने जो कहा, वह झूठ कैसे हो सकता है।

लेकिन तेनालीराम शास्त्रों से अधिक अपनी बुद्धि पर विश्वास करता था। उसने वहाँ बैठे सभी लोगों से कहा, ‘यदि ऐसी बात है तो हम क्यों न पंडितजी के इस विचार की सच्चाई जाँच लें। हमारे उदार महाराज की ओर से आज दावत दी जा रही है, उसे हम जी भरकर खाएँगे। पंडितजी से प्रार्थना है कि वह बैठे रहें और सोचें कि वह भी खा रहे हैं।’

तेनालीराम की बात पर जोर का ठहाका लगा। पंडितजी की सूरत देखते ही बनती थी कि महाराज तेनालीराम पर इतने प्रसन्न हुए कि उसे स्वर्णमुद्राओं की एक थाली भेंट की और उसी समय तेनालीराम को राज विदूषक बना दिया। सब लोगों ने तालियाँ बजाकर महाराज की इस घोषणा का स्वागत किया, उनमें राजगुरु भी था।.

9.अन्तिम इच्छा


समय के साथ-साथ राजा कॄष्णदेव राय की माता बहुत वॄद्ध हो गई थीं। एक बार वह बहुत बीमार पड गई। उन्हें लगा कि अब वे शीघ्र ही मर जाएँगी। उन्हें आम से बहुत था, इसलिए जीवन के अन्तिम दिनों में वे आम दान करना चाहती थीं। सो उन्होंने राजा से ब्राह्म्णों को आमों को दान करने की इच्छा प्रकट की। वह् समझती थी कि इस प्रकार दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। सो कुछ दिनों बाद राजा की माता अपनी अन्तिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मॄत्यु को प्राप्त हो गईं।
उनकी मॄत्यु के बाद राजा ने सभी विव्दान ब्राह्म्णों को बुलाया और अपनी माँ की अन्तिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया। कुछ देर तक चुप रहने के पश्चात ब्राह्म्ण बोले,” यह तो बहुत ही बुरा हुआ महाराज, अन्तिम इच्छा के पूरा न होने की दशा में तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल सकती। वे प्रेत योनि में भटकती रहेंगी। महाराज आपको उनकी आत्मा की शान्ति का उपाय करना चाहिये।”

तब महाराज ने उनसे अपनी माता की अन्तिम इच्छा की पुर्ति का उपाय पूछा। ब्राह्म्ण बोले, “उनकी आत्मा की शांति के लिये आपको उनकी पुण्यतिथि पर सोने के आमों का दान करना पडेगा।” अतः राजा ने मॉ की पुण्यतिथि पर कुछ ब्राह्म्णों को भोजन के लिय बुलाया और प्रत्येक को सोने से बने आम दान में दिए।

जब तेनाली राम को यह पता चला, तो वह तुरन्त समझ गया कि ब्राह्म्ण् लोग राजा की सरलता तथा भोलेपन का उठा रहे हैं। सो उसने उन ब्राह्म्णों को पाठ पढाने की एक योजना बनाई।

अगले दिन तेनाली राम ने ब्राह्म्णों को निमंत्रण-पत्र भेजा। उसमें लिखा था कि तेनाली राम भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहता हैं। क्योंकि वह भी अपनी एक अधूरी इच्छा लेकर मरी थीं। जब से उसे पता चला है कि उसकी माँ की अन्तिम इच्छा पूरी न होने के कारण प्रेत-योनी में भटक रही होंगी, वह बहुत ही दुःखी है और चाहता है कि जल्दी उसकी मॉ की आत्मा को शान्ति मिले। ब्राह्म्णों ने सोचा कि तेनाली राम के घर से भी बहुत अधिक दान मिलेगा’ क्योंकि वह शाही विदूषक है।

सभी ब्राह्म्ण निश्चित दिन तेनाली राम के घर पहुँच गए। ब्राह्म्णों को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। भोजन करने के पश्चात् सभी दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगे। तभी उन्होने देखा कि तेनाली राम लोहे के सलाखों को आग में गर्म कर रहा है। पूछने पर तेनाली राम बोला, “मेरी माँ फोडों के दर्द् से परेशान थीं। मॄत्यु के समय उन्हें बहुत तेज दर्द हो रहा था। इससे पहले कि मैं गर्म सलाखों से उनकी सिकाई करता, वह मर चुकी थी।” अब उनकी आत्मा की शान्ति के लिए मुझे आपके साथ वैसा ही करना पडेगा, जैसी कि उनकी अन्तिम इच्छा थी।” यह सुनकर ब्राह्म्ण बौखला गए। वे वहॉ से तुरन्त चले जाना चाहते थे। वे गुस्से में तेनाली राम से बोले कि हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मॉ की आत्मा को शान्ति मिलेगी?”

“नहीं महाशय्, मैं झूठ नहीं बोल रहा। यदि सोने के आम दान में देने से महाराज की मॉ की आत्मा को स्वर्ग में शान्ति मिल सकती है तो मैं अपनी मॉ की अन्तिम इच्छा क्यों नहीं पूरी कर सकता?”

यह सुनते ही सभी ब्राह्म्ण समझ गए की तेनाली राम क्या कहना चाहता है। वह बोले, “तेनाली राम, हमें क्षमा करो। हम वे सोने के आम तुम्हें दे देते हैं। बस तुम हमें जाने दो।”

तेनाली राम ने सोने के आम लेकर ब्राह्म्णों को जाने दिया, परन्तु एक लालची ब्राह्म्ण ने सारी बात राजा को जाकर बता दी। यह सुनकर राजा क्रोधित हो गए और उन्होनें तेनाली राम को बुलाया। वे बोले “तेनाली राम यदि तुम्हे सोने के आम चाहिए थे, तो मुझसे मॉग लेते। तुम इतने लालची कैसे हो गए कि तुमने ब्राह्म्णों से सोने के आम ले लिए?”

“महाराज, मैं लालची नहीं हूँ, अपितु मैं तो उनकी लालच की प्रवॄत्ति को रोक रहा था। यदि वे आपकी मॉ की पुण्यतिथि पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं, तो मेरी मॉ की पुण्यतिथि पर लोहे की गर्म सलाखें क्यों नहीं झेल सकते?”

राजा तेनाली राम की बातों का अर्थ समझ गए। उन्होंने ब्राह्म्णों को बुलाया और उन्हें भविष्य में लालच त्यागने को कहा।.

10.जनता की अदालत


एक दिन राजा कृष्णदेव राय शिकार के लिए गए। वह जंगल में भटक गए। दरबारी पीछे छूट गए। शाम होने को थी। उन्होंने घोड़ा एक पेड़ से बांधा। रात पास के एक गांव में बिताने का निश्चय किया। राहगीर के वेश में किसान के पास गए। कहा, “दूर से आया हूं। रात को आश्रय मिल सकता है?”
किसान बोला, “आओ, जो रूखा-सूखा हम खाते हैं, आप भी खाइएगा। मेरे पास एक पुराना कम्बल ही है, क्या उसमें जाड़े की रात काट सकेंगे?” राजा ने ‘हां’ में सिर हिलाया।

रात को राजा गांव में घूमे। भयानक गरीबी थी। उन्होंने पूछा, “दरबार में जाकर फरियाद क्यों नहीं करते?” कैसे जाएं? राजा तो चापलूसों से घिरे रहते हैं। कोई हमें दरबार में जाने ही नहीं देता।” किसान बोला।

सुबह राजधानी लौटते ही राजा ने मंत्री और दूसरे अधिकारियों को बुलाया। कहा, “हमें पता चला है, हमारे राज्य के गांवों की हालत ठीक नहीं है। तुम गांवों की भलाई के काम करने के लिए खज़ाने से काफी रुपया ले चुके हो। क्या हुआ उसका?”

मंत्री बोला, “महाराज, सारा रुपया गांवों की भलाई में खर्च हुआ है। आपसे किसी ने गलत कहा।” मंत्री के जाने के बाद उन्होंने तेनाली राम को बुलवा भेजा। कल की पूरी घटना कह सुनाई। तेनाली राम ने कहा, “महाराज, प्रजा दरबार में नहीं आएगी। अब आपको ही उनके दरबार में जाना चाहिए। उनके साथ जो अन्याय हुआ है, उसका फैसला उन्हीं के बीच जाकर कीजिए।”

अगले दिन राजा ने दरबार में घोषणा की-“कल से हम गांव-गांव में जाएंगे, यह देखने के लिए कि प्रजा किस हाल में जी रही है!” सुनकर मंत्री बोला, “महाराज, लोग खुशहाल हैं। आप चिन्ता न करें। जाड़े में बेकार परेशान होंगे।”

तेनाली राम बोला, “मंत्रीजी से ज्यादा प्रजा का भला चाहने वाला और कौन होगा? यह जो कह रहे हैं, ठीक ही होगा। मगर आप भी तो प्रजा की खुशहाली देखिए।” मंत्री ने राजा को आसपास के गांव दिखाने चाहे। पर राजा ने दूर-दराज के गावों की ओर घोड़ा मोड़ दिया। राजा को सामने पाकर लोग खुल कर अपने समस्याएं बताने लगे।

मंत्री के कारनामे का सारा भेद खुल चुका था। वह सिर झुकाए खड़ा था। राजा कृष्णदेव राय ने घोषणा करवा दी- अब हर महीने कम से कम एक बार वे खुद जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे।.

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